तुम युवा हो, युग को नया अवतार दो शंख फूंको, प्रेरणा साकार दो.
एक नूतन रागिनी में वेदना का स्वर संजोकर ध्यय पथ निर्माण कर दो.
सृजन के नव गीत गाकर कल्पना को सत्य का श्रृंगार दो.
आज इस रंगीन दुनिया के सुहाने स्वप्न भूलो
भौतिकी निष्ठुर जगत के बन्धनों का प्रश्न भूलो
कर्मपथ की विषमता को प्रेम गंगा धार दो.
चिर प्रगति की राह बोलो कब मिली है नींद भरकर?
साधना का पथ कठिन है, तुम उठो सर्वस्व तजकर ज्ञान घृत से राष्ट्र दीपक वार दो.
सिन्धु की लहरें हिमालय से भला क्या होड़ लेंगी?
रक्त की दस बूंदे बहती धार को मोड़ देंगी.
तुम स्वयं के रक्त से अभिसार दो.
आज सबकी पूज्य भारत जननी की पग धूलि होवे और समता एकता में अब न कोई भूल होवे.
इस विषैली सभ्यता को अमृत संस्कार दो, तुम युवा हो युग को नया आधार दो.
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