मैं ग्राम्यबाला
ना मै फूलों की डाली हूँ, जो विहंसी-विहंसी करके गाऊं.
ना मै सुन्दर चितवन की रानी हूँ, जो घबराऊं, शरमाऊं.
मैं अग्नि का प्रचंड तेज हूँ, असि की दुधिया धरा हूँ.
सरल नहीं पथ संकीर्ण है मेरा, क्यों कोमलता का गीत मैं गाऊं.
मैं खेतों की मिटटी में, सोने का मूल्य चुकाती हूँ.
माथे पे बूंदे जो चमके, ऐसी पीली कलि खिलाऊ
ना पनघट की मैं गोरी हु, जो घूँघट टेल लज्जाऊं
मैं कोल्हू के बैलों संग, अपनी मीठी राग सुनाऊं.
मैं बसंत की पवन नहीं हूँ, जो मधुर रागिनी झंकाऊं.
झुलसा दूं मैं ऐसी दुपहरी, अनल-अवनी पर सौउं
ना मैं कोई क्षत्राणी हूँ, जो विजय- थाल सजाऊं.
ran चंडी जन्मभूमि की मैं, जन - जन में आग जगाऊं.
ध्येय मेरा केवल इतना है, जग को सुखी बनाऊं.
सबके सुख में अपना सुख है, जन मन को यही सिखलाऊ.
मैं ग्राम्यबाला हूँ, अपनी धरती माँ का मान badhaaun
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